नई दिल्ली: इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (ICAI) ने प्री-बजट मेमोरेंडा-2021 में जीवन बीमा को लेकर एक प्रस्ताव रखा है. इस प्रस्ताव के तहत आईसीएआई ने केंद्र सरकार को सुझाव दिया है कि जीवन बीमा की जिन पॉलिसीज की अवधि 10 साल या उससे अधिक हैं, उस पर बीमाधारकों को टैक्स में राहत मिलनी चाहिए.
इंस्टीट्यूट ने सुझाव दिया है कि जीवन बीमा पर टैक्स एग्जेंप्शन अब पॉलिसी टर्म के आधार पर दिया जाना चाहिए, ना कि प्रीमियम और सम एश्योर्ड के अनुपात आधार पर.
वर्तमान नियमों के मुताबिक सेक्शन 10 (10डी) के तहत चुकाए गए प्रीमियम और सम एश्योर्ड के आधार पर टैक्स एग्जेंप्शन मिलता है. कुछ जीवन बीमा पॉलिसी में अधिक उम्र, पेशे, लाइफस्टाइल या बीमारी के कारण प्रीमियम अधिक चुकाना पड़ता है और यह टैक्सेबल भी होता है. आईसीएआई ने अपने नोट में लिखा है कि अधिक प्रीमियम की वजह से पॉलिसीहोल्डर्स को इंश्योरेंस कवर पर टैक्स कवर नहीं मिलता है.
अधिक प्रीमियम चुकाने वाले पॉलिसीहोल्डर्स के लिए आईसीएआई ने सुझाव दिया है कि 10 साल या उससे अधिक टर्म वाली पॉलिसी पर टैक्स एग्जेंप्शन की सुविधा देनी चाहिए. इससे मध्यम से लेकर लंबे समय तक के लिए निवेश भी बढ़ेगा.
वर्तमान सिस्टम के मुताबिक जीवन बीमा पॉलिसी पर सेक्शन 10 (10डी) के तहत पूरे प्रीमियम पर छूट नहीं मिलती है. आईसीएआई का कहना है कि किसी पॉलिसी के सरेंडर या विदड्रॉल के समय नेट इनकम या हानि की गणना करने के लिए जो प्रीमियम डिडक्ट किया जाता है, उसमें इंफ्लेशन का ध्यान नहीं रखा जाता है और नतीजतन टैक्सेबिलिटी बढ़ती है. इस मसले के समाधान के लिए आईसीएआई ने सुझाव दिया है कि जीवन बीमा पॉलिसी को ऐसे कैपिटल एसेट के तौर पर ट्रीट करना चाहिए जो इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 2(4) के तहत प्रॉपर्टी की परिभाषा में आता है. इससे चुकाए गए प्रीमियम पर इंडेक्सेशन बेनेफिट मिलेगा.